27 C
Mumbai
13.1 C
Delhi
19 C
Kolkata
Monday, December 11, 2023

Chanakya Neeti – Third Chapter

कस्य दोषः कुलेनास्ति व्याधिना के न पीडितः ।
व्यसनं के न संप्राप्तं कस्य सौख्यं निरन्तरम् ।।१।।

१. इस दुनिया मे ऐसा किसका घर है जिस पर कोई कलंक नहीं, वह कौन है जो रोग और दुख से मुक्त है.सदा सुख किसको रहता है?

आचारः कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम् ।
सम्भ्रमः स्नेहमाख्यातिवपुराख्याति भोजनम् ।।२।।

२. मनुष्य के कुल की ख्याति उसके आचरण से होती है, मनुष्य के बोल चल से उसके देश की ख्याति बढ़ती है, मान सम्मान उसके प्रेम को बढ़ता है, एवं उसके शारीर का गठन उसे भोजन से बढ़ता है.

सत्कुले योजयेत्कन्यां पुत्रं विद्यासु योजतेत् ।
व्यसने योजयेच्छत्रुं मित्रं धर्मे नियोजयेत् ।।३।।

३. लड़की का बयाह अच्छे खानदान मे करना चाहिए. पुत्र को अचछी शिक्षा देनी चाहिए, शत्रु को आपत्ति और कष्टों में डालना चाहिए, एवं मित्रों को धर्म कर्म में लगाना चाहिए.

दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः ।
सर्पो दंशति काले तु दुर्जनस्तु पदे पदे ।।४।।

४. एक दुर्जन और एक सर्प मे यह अंतर है की साप तभी डंख मरेगा जब उसकी जान को खतरा हो लेकिन दुर्जन पग पग पर हानि पहुचने की कोशिश करेगा .

एदतर्थं कुलोनानां नृपाः कुर्वन्ति संग्रहम् ।
आदिमध्यावसानेषु न स्यजन्ति च ते नृपम् ।।५।।

५. राजा लोग अपने आस पास अच्छे कुल के लोगो को इसलिए रखते है क्योंकि ऐसे लोग ना आरम्भ मे, ना बीच मे और ना ही अंत मे साथ छोड़कर जाते है.

प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः ।
सागरा भेदमिच्छान्ति प्रलयेऽपि न साधवः ।।६।।

६. जब प्रलय का समय आता है तो समुद्र भी अपनी मयारदा छोड़कर किनारों को छोड़ अथवा तोड़ जाते है, लेकिन सज्जन पुरुष प्रलय के सामान भयंकर आपत्ति अवं विपत्ति में भी आपनी मर्यादा नहीं बदलते.

मूर्खस्तु परिहर्त्तव्यः प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः ।
भिद्यते वाक्यशूलेन अदृश्यं कण्टकं यथा ।।७।।

७. मूर्खो के साथ मित्रता नहीं रखनी चाहिए उन्हें त्याग देना ही उचित है, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से वे दो पैरों वाले पशु के सामान हैं,जो अपने धारदार वचनो से वैसे ही हदय को छलनी करता है जैसे अदृश्य काँटा शारीर में घुसकर छलनी करता है .

रूपयौवनसम्पन्ना विशालकुलसम्भवाः ।
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इवकिशुकाः ।।८।।

८. रूप और यौवन से सम्पन्न तथा कुलीन परिवार में जन्मा लेने पर भी विद्या हीन पुरुष पलाश के फूल के समान है जो सुन्दर तो है लेकिन खुशबु रहित है.

कोकिलानां स्वरो रूपं नारीरूपं पतिव्रतम् ।
विद्यारूपं कुरूपाणांक्षमा रूपं रपस्विनाम् ।।९।।

९. कोयल की सुन्दरता उसके गायन मे है. एक स्त्री की सुन्दरता उसके अपने पिरवार के प्रति समर्पण मे है. एक बदसूरत आदमी की सुन्दरता उसके ज्ञान मे है तथा एक तपस्वी की सुन्दरता उसकी क्षमाशीलता मे है.

त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत् ।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ।।१०।।

१०. कुल की रक्षा के लिए एक सदस्य का बिलदान दें,गाव की रक्षा के लिए एक कुल का बिलदान दें, देश की रक्षा के लिए एक गाव का बिलदान दें, आतमा की रक्षा के लिए देश का बिलदान दें.

उद्योगे नास्ति दारिद्र्य जपतो नास्ति पातकम् ।
मौनेनकलहोनास्ति नास्ति जागरितो भयम् ।।११।।

११.जो उद्यमशील हैं, वे गरीब नहीं हो सकते,
जो हरदम भगवान को याद करते है उनहे पाप नहीं छू सकता.
जो मौन रहते है वो झगड़ों मे नहीं पड़ते.
जो जागृत रहते है वो िनभरय होते है.

अतिरूपेण वै सीता अतिगर्वेणः रावणः ।
अतिदानाब्दलिर्बध्दो ह्यति सर्वत्र वर्जयेत् ।।१२।।

आत्याधिक सुन्दरता के कारन सीताहरण हुआ, अत्यंत घमंड के कारन रावन का अंत हुआ, अत्यधिक दान देने के कारन रजा बाली को बंधन में बंधना पड़ा, अतः सर्वत्र अति को त्यागना चाहिए.

कोऽतिभारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम्।
को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् ।।१३।।

१३. शक्तिशाली लोगों के लिए कौनसा कार्य कठिन है ? व्यापारिओं के लिए कौनसा जगह दूर है, विद्वानों के लिए कोई देश विदेश नहीं है, मधुभाषियों का कोई शत्रु नहीं.

एकेनापि सुवृक्षेण दह्यमानेन गन्धिना ।
वासितं तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा ।।१४।।

१४. जिस तरह सारा वन केवल एक ही पुष्प अवं सुगंध भरे वृक्ष से महक जाता है उसी तरह एक ही गुणवान पुत्र पुरे कुल का नाम बढाता है.

एकेन शुष्कवृक्षेण दह्यमानेन वन्हिना ।
दह्यते तद्वनं सर्व कुपुत्रेण कुलं यथा ।।१५।।

१५. जिस प्रकार केवल एक सुखा हुआ जलता वृक्ष सम्पूर्ण वन को जला देता है उसी प्रकार एक ही कुपुत्र सरे कुल के मान, मर्यादा और प्रतिष्ठा को नष्ट कर देता है.

एकेनापि सुपुत्रेण विद्यायुक्तेन साधुना ।
आल्हादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी ।।१६।।

१६. विद्वान एवं सदाचारी एक ही पुत्र के कारन सम्पूर्ण परिवार वैसे ही खुशहाल रहता है जैसे चन्द्रमा के निकालने पर रात्रि जगमगा उठती है.

किं जातैर्बहुभिः पुत्रैः शोकसन्तापकारकैः ।
वरमेकः कुलालम्बी यत्र विश्राम्यते कुलम् ।।१७।।

१७. ऐसे अनेक पुत्र किस काम के जो दुःख और निराशा पैदा करे. इससे तो वह एक ही पुत्र अच्छा है जो समपूणर घर को सहारा और शांित पदान करे.

लालयेत्पञ्चवर्षाणि दश वर्षाणि ताडयेत् ।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत् ।।१८।।

१८. पांच साल तक पुत्र को लाड एवं प्यार से पालन करना चाहिए, दस साल तक उसे छड़ी की मार से डराए. लेकिन जब वह १६ साल का हो जाए तो उससे मित्र के समान वयवहार करे.

उपसर्गेऽन्यचक्रे च दुर्भिक्षे च भयावहे ।
असाधुजनसम्पर्के यः पलायति जीवति ।।१९।।

१९. वह व्यक्ति सुरक्षित रह सकता है जो नीचे दी हुई परिस्थितियां उत्पन्न होने पर भाग जाए.
१. भयावह आपदा.
२. विदेशी आक्रमण
३. भयंकर अकाल
४. दुष व्यक्ति का संग.

धर्मार्थकाममोक्षेषु यस्यैकोऽपि न विद्यते ।
जन्मजन्मनि मर्त्येष मरणं तस्य केवलम् ।।२०।।

२०. जो व्यक्ति निम्नलिखित बाते अर्जित नहीं करता वह बार बार जनम लेकर मरता है.
१. धमर
२. अर्थ
३. काम
४. मोक्ष

मूर्खा यत्र न पुज्यन्ते धान्यं यत्र सुसञ्चितम् ।
दाम्पत्ये कलहो नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागता ।।२१।।

२१. धन की देवी लक्ष्मी स्वयं वहां चली आती है जहाँ …
१. मूर्खो का सम्मान नहीं होता.
२. अनाज का अचछे से भणडारण किया जाता है.
३. पति, पत्नी मे आपस मे लड़ाई बखेड़ा नहीं होता है.

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike

Latest Articles