27 C
Mumbai
13.1 C
Delhi
19 C
Kolkata
Monday, December 11, 2023

Chanakya Neeti – Eighth Chapter

अधमा धनमिइच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः ।
उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम् ।।१।।

१. नीच वर्ग के लोग दौलत चाहते है, मध्यम वर्ग के दौलत और इज्जत, लेकिन उच्च वर्ग के लोग सम्मान चाहते है क्यों की सम्मान ही उच्च लोगो की असली दौलत है.

इक्षुरापः पयो मूलं ताम्बूलं फलमौषधम् ।
भक्षयित्वाऽपिकर्तव्याःस्नानदानादिकाःक्रियाः ।।२।।

२. ऊख, जल, दूध, पान, फल और औषधि इन वस्तुओं के भोजन करने पर भी स्नान दान आदि क्रिया कर सकते हैं।

दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते ।
यदन्नं भक्ष्यते नित्यं जायते तादृशी प्रजा ।।३।।

३. दीपक अँधेरे का भक्षण करता है इसीलिए काला धुआ बनाता है. इसी प्रकार हम जिस प्रकार का अन्न खाते है. माने सात्विक, राजसिक, तामसिक उसी प्रकार के विचार उत्पन्न करते है.

वित्तंदेहि गुणान्वितेष मतिमन्नाऽन्यत्रदेहि क्वचित् ।
प्राप्तं वारिनिधेर्जलं घनमुचां माधुर्ययुक्तं सदा
जीवाः स्थावरजड्गमाश्च सकला संजीव्य भूमण्डलं ।
भूयः पश्यतदेवकोटिगुणितंगच्छस्वमम्भोनिधिम् ।।४।।

४. हे विद्वान् पुरुष ! अपनी संपत्ति केवल पात्र को ही दे और दूसरो को कभी ना दे. जो जल बादल को समुद्र देता है वह बड़ा मीठा होता है. बादल वर्षा करके वह जल पृथ्वी के सभी चल अचल जीवो को देता है और फिर उसे समुद्र को लौटा देता है.

चाण्डालानां सहस्त्रैश्च सूरिभिस्तत्त्वदर्शिभिः ।
एको हि यवनः प्रोक्तो न नीचो यवनात्परः ।।५।।

५ .विद्वान् लोग जो तत्त्व को जानने वाले है उन्होंने कहा है की मास खाने वाले चांडालो से हजार गुना नीच है. इसलिए ऐसे आदमी से नीच कोई नहीं.

तैलाभ्यड्गे चिताधूमे मैथुने क्षौरकर्मणि ।
तावद् भवति चाण्डालो यावत्स्नानं न चाचरेत् ।।६।।

६.शरीर पर मालिश करने के बाद, स्मशान में चिता का धुआ शरीर पर आने के बाद, सम्भोग करने के बाद, दाढ़ी बनाने के बाद जब तक आदमी नहा ना ले वह चांडाल रहता है.

अजीर्णे भेषजं वारि जार्णे वारि बलप्रदम् ।
भोजने चाऽमृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम् ।।७।।

७. जल अपच की दवा है. जल चैतन्य निर्माण करता है, यदि उसे भोजन पच जाने के बाद पीते है. पानी को भोजन के बाद तुरंत पीना विष पिने के समान है.

हतं ज्ञानं क्रियाहीनं हतश्चाऽज्ञानतो नरः ।
हतं निर्नायकं सैन्यं स्त्रियो नष्टा ह्यभर्तृकाः ।।८।।

८.यदि ज्ञान को उपयोग में ना लाया जाए तो वह खो जाता है. आदमी यदि अज्ञानी है तो खो जाता है. सेनापति के बिना सेना खो जाती है. पति के बिना पत्नी खो जाती है.

वृध्द्काले मृता भार्या बन्धुहस्ते गतं धनम् ।
भाजनं च पराधीनं स्त्रिः पुँसां विडम्बनाः ।।९।।

९.वह आदमी अभागा है जो अपने बुढ़ापे में पत्नी की मृत्यु देखता है. वह भी अभागा है जो अपनी सम्पदा संबंधियों को सौप देता है. वह भी अभागा है जो खाने के लिए दुसरो पर निर्भर है.

अग्निहोत्रं विना वेदाः न च दानं विना क्रियाः ।
न भावेनविना सिध्दिस्तस्माद्भावो हि कारणम् ।।१०।।

१०. यह बाते बेकार है. वेद मंत्रो का उच्चारण करना लेकिन निहित यज्ञ कर्मो को ना करना. यज्ञ करना लेकिन बाद में लोगो को दान दे कर तृप्त ना करना. पूर्णता तो भक्ति से ही आती है. भक्ति ही सभी सफलताओ का मूल है.

न देवो विद्यते काष्ठे न पाषाणे न मृण्मये ।
भावे हि विद्यते देवस्तस्माद्भावो हि कारणम् ।।११।।

११.देवता न काठ में, पत्थर में, और न मिट्टी ही में रहते हैं वे तो रहते हैं भाव में। इससे यह निष्कर्ष निकला कि भाव ही सबका कारण है।

काष्ठ-पाषाण-धातूनां कृत्वा भावेन सेवनम् ।
श्रध्दया च तया सिध्दिस्तस्य विष्णोः प्रसादतः ।।१२।।

१२. काठ, पाषाण तथा धातु की भी श्रध्दापूर्वक सेवा करने से और भगवत्कृपा से सिध्दि प्राप्त हो जाती है।

शान्तितुल्यं तपो नास्ति न सन्तोषात्परं सुखम् ।
न तृष्णया परो व्याधिर्न च धर्मो दया परः ।।१३।।

१३. एक संयमित मन के समान कोई तप नहीं. संतोष के समान कोई सुख नहीं. लोभ के समान कोई रोग नहीं. दया के समान कोई गुण नहीं.

क्रोधो वैवस्वतो राहा तृष्णा वैतरणी नदी ।
विद्या कामदुधा धेनुः सन्तोषो नन्दनंवनम् ।।१४।।

१४. क्रोध साक्षात् यम है. तृष्णा नरक की और ले जाने वाली वैतरणी है. ज्ञान कामधेनु है. संतोष ही तो नंदनवन है.

गुणो भूषयते रूपं शीलं भूषयते कुलम् ।
सिध्दिर्भूषयते वद्यां भोगी भूषयते धनम् ।।१५।।

१५. नीति की उत्तमता ही व्यक्ति के सौंदर्य का गहना है. उत्तम आचरण से व्यक्ति उत्तरोत्तर ऊँचे लोक में जाता है. सफलता ही विद्या का आभूषण है. उचित विनियोग ही संपत्ति का गहना है.

निर्गुणस्य हतं रूपं दुःशीलस्य हतं कुलम् ।
असिध्दस्य हता विद्या अभोगेन हतं धनम् ।।१६।।

१६. निति भ्रष्ट होने से सुन्दरता का नाश होता है. हीन आचरण से अच्छे कुल का नाश होता है. पूर्णता न आने से विद्या का नाश होता है. उचित विनियोग के बिना धन का नाश होता है.

शुध्दं भूमिगतं तोयं शुध्दा नारी पतिव्रता ।
शुचिः क्षेमकरोराजा संतोषी ब्राह्मणः शुचिः ।।१७।।

१७. जो जल धरती में समां गया वो शुद्ध है. परिवार को समर्पित पत्नी शुद्ध है. लोगो का कल्याण करने वाला राजा शुद्ध है. वह ब्राह्मण शुद्ध है जो संतुष्ट है.

असंतुष्टा द्विजा नष्टाः संतुष्टाश्च महीभृतः ।
सलज्जागणिकानष्टाः निर्लज्जाश्च कुलांगनाः ।।१८।।

१८. असंतुष्ट ब्राह्मण, संतुष्ट राजा, लज्जा रखने वाली वेश्या, कठोर आचरण करने वाली गृहिणी ये सभी लोग विनाश को प्राप्त होते है.

किं कुलेन विशालेन विद्याहीनेन देहिनाम् ।
दुष्कुलं चापि विदुषी देवैरपि हि पूज्यते ।।१९।।

१९.क्या करना उचे कुल का यदि बुद्धिमत्ता ना हो. एक नीच कुल में उत्पन्न होने वाले विद्वान् व्यक्ति का सम्मान देवता भी करते है.

विद्वान् प्रशस्यते लोके विद्वान्सर्वत्र गौरवम् ।
विद्यया लभते सर्व विद्या सर्वत्र पूज्यते ।।२०।।

२०.विद्वान् व्यक्ति लोगो से सम्मान पाता है. विद्वान् उसकी विद्वत्ता के लिए हर जगह सम्मान पाता है. यह बिलकुल सच है की विद्या हर जगह सम्मानित है.

रूपयौवनसंपन्ना विशालकुलसम्भवाः ।
विद्याहीना नशोभन्ते निर्गन्धा इवकिंशुकाः ।।२१।।

२१. जो लोग दिखने में सुन्दर है, जवान है, ऊँचे कुल में पैदा हुए है, वो बेकार है यदि उनके पास विद्या नहीं है. वो तो पलाश के फूल के समान है जो दिखते तो अच्छे है पर महकते नहीं.

मांसभक्षैः सुरापानैः मूर्खैश्चाऽक्षरवर्जितैः ।
पशुभि पुरुषाकारर्भाराक्रान्ताऽस्ति मेदिनी ।।२२।।

२२. यह धरती उन लोगो के भार से दबी जा रही है, जो मास खाते है, दारू पीते है, बेवकूफ है, वे सब तो आदमी होते हुए पशु ही है.

अन्नहीना दहेद्राष्ट्रं मंत्रहीनश्च रिषीत्विजः ।
यजमानं दानहीनो नास्ति यज्ञसमो रिपुः ।।२३।।

२३. उस यज्ञ के समान कोई शत्रु नहीं जिसके उपरांत लोगो को बड़े पैमाने पर भोजन ना कराया जाए. ऐसा यज्ञ राज्यों को ख़तम कर देता है. यदि पुरोहित यज्ञ में ठीक से उच्चारण ना करे तो यज्ञ उसे ख़तम कर देता है. और यदि यजमान लोगो को दान एवं भेटवस्तू ना दे तो वह भी यज्ञ द्वारा ख़तम हो जाता है.

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike

Latest Articles